हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट अनुसार, अख़लाक़ व तर्बियत इंस्टिट्यूट के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मोहम्मद जवाद जारेआन ने हौज़ा इल्मिया के मीडिया और सोशल मीडिया सेंटर और हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के डायरेक्टर के साथ एक बैठक में, शहादत-ए-हज़रत फातिमा ज़हरा सला मुल्ला अलैहा के मौके पर ताज़ियत पेश की और मआरिफ-ए-इस्लामी के प्रसार में मीडिया की भूमिका के महत्व पर बातचीत करते हुए कहा: इस्लामी क्रांति के बाद पैदा होने वाला माअनवी माहौल मीडिया को इस्लामी अफकार की तरफ रुख देने का सबब बना। इस माहौल में बहुत से ऐसे मीडिया इदारे बने जो मआरेफ-ए-दिनी, मफाहीम-ए-तशय्यु और सदा-ए-शिया की तरजुमानी करते हैं।
उन्होंने आगे कहा: हौज़ा न्यूज़ एजेंसी इस लिहाज़ से मुमताज़ है कि वो उलमा और रुहानीयत की नुमाइंदगी करती है और अफकार-ए-असील हौज़वी की हकीकी तरजुमान है। हालांकि दीन के मैदान में सक्रीय मुख्तलिफ मीडिया के दरमियान सरहद-बंदी हमेशा आसान नहीं होती, मगर असल बात ये है कि ये ख़बर रसां इदारा अपनी असली सिम्त और ज़िम्मेदारी से जुदा न हो।

अख़लाक़ व तर्बियत इंस्टिट्यूट के प्रमुख ने इस बात पर ज़ोर दिया कि हौज़वी मीडिया को चाहिए कि अपने बुनियादी मिशन से मुनहरिफ न हों, क्योंकि मुल्की मीडिया का कभी-कभी ग़ैर-हमआहंग ज़राए से मुतास्सिर होना, अहदाफ़-ए-इंकलाब-ए-इस्लामी से दूरी का बाइस बन सकता है। हौज़वी मीडिया सेंटर का इल्मी और तख़स्सुसी मिज़ाज एक कीमती सरमाया है जिसे महफूज़ और मजबूत होना चाहिए।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन जारेआन ने हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर गतिविधियों को क़ाबिल-ए-सताइश क़रार देते हुए कहा: ये बात खुशी की है कि हौज़ा न्यूज़ मुख्तलिफ ज़बानों में और वसीअ मुख़ातिब की सतह पर काम कर रही है।
उन्होंने आगे कहा: आज दुनिया-ए-इस्लाम, शिया समाज और यहाँ तक कि इंसानी समाज भी इंकलाब-ए-इस्लामी ईरान के किरदार और हौज़ात-ए-इल्मिया के मकाम को समझने का मुन्तज़िर है जब कि बहुत से बैनुलअक़वामी मीडिया, चाहे वो हमआहंग हों या मुखालिफ़, इस बारे में इज़हार-ए-ख़याल कर रहे हैं। ऐसे में ज़रूरी है कि हौज़वी मीडिया इस सच्ची और असली रिवायत को दुनिया तक पहुंचाए।

अखलाक़ व तर्बियत इंस्टिट्यूट के प्रमुख ने कहा: अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर ज़बानों की तादाद बढ़ाने और मवाद की फिक्री व अदबी सतह बुलंद करने के लिए मजीद सरमाया-गुज़ारी की ज़रूरत है ताकि पैग़ाम-ए-हौज़ा और इंकलाब-ए-इस्लामी बाऔक़ार अंदाज़ में आलम-ए-इंसानियत तक पहुँच सके।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन जारेआन ने कहा: आज हम हर हाल में अस्र-ए-मीडिया में ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं। दशकों से मीडिया अफकार-ए-आम्मा बल्कि आर्थिक और यहाँ तक कि सैन्य समीकरण की तशकील में फैसला कुन किरदार अदा कर रहा है।
उन्होंने कहा: वैश्विक उपनि ने कौमों पर फिक्री, साकाफ़ती और इक़तेसादी ग़लबा ज़्यादातर मीडिया के ज़रिए ही हासिल किया है।
अख़लाक़ व तर्बियत इंस्टिट्यूट के सरपरस्त ने कनाडा में अपनी 7 से 8 साल की सुकूनत का हवाला देते हुए कहा: बाहर ईरान के खिलाफ मीडिया प्रोपेगेंडा इतना वसीअ और मुनज़्ज़म है कि कभी-कभी ये यहाँ तक कि अकीदा रखने वाले अफ़राद के ज़ेहन पर भी असर करता है और यही तजुर्बा इस हकीकत को वाज़ेह करता है कि मीडिया इंसानी इदraak और यकीन को कितना तब्दील कर सकता है।
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